नीलकुरिंजी: 12 वर्षों के बाद केरल में खिल रहा है विश्व का सबसे दुर्लभ फूल

By Mangesh Kadam

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भूकंप समाचार: नीलकुरिंजी का अद्वितीय सौंदर्य से भरा आश्चर्यजनक रूप

केरल, भारत: नीलकुरिंजी, वह अद्वितीय फूल जो 12 वर्षों के बाद पुनः खिला है, ने प्राकृतिक सौंदर्य की नई ऊंचाइयों को छूने का क्षण बनाया है। यह भूमि पर एक नए रंगीनी से भरा हुआ है, जो इसे सबसे दुर्लभ फूल में से एक बनाता है।

नीलकुरिंजी: एक अनूठा प्राकृतिक विस्मय

इस अनूठे फूल का नाम “नीलकुरिंजी” है, जो समय-समय पर खिलता है और अपनी सुंदरता से सभी को मोहित करता है। यह फूल 12 वर्षों के बाद खिलता है, जो इसे और भी विशेष बनाता है।

क्यों है यह खास?

नीलकुरिंजी की विशेषता यह है कि यह सिर्फ 12 वर्षों के बाद ही अपना सौंदर्यिक रूप दिखाता है। इसका इंतजार करना एक अलग रूप में एक आश्चर्यजनक अनुभव है, जिसमें प्राकृतिक सौंदर्य की एक नई ऊंचाइयों का आभास होता है।

नीलकुरिंजी का रहस्यमय संबंध

इस फूल की खासियत में एक रहस्य है, जिसमें इसका खिलना एक समय सीमा से जुड़ा होता है। यह सामान्यत: 12 वर्षों के बाद ही अपनी सुंदरता का परिचय कराता है और इसे एक अद्वितीय फूल बनाता है।

नीलकुरिंजी का फूल कौन सा होता है?

नीलकुरिंजी या कुरिंजी (Strobilanthes kunthiana) दक्षिण भारत के पश्चिम घाट के १८०० मीटर से ऊंचे शोला घास के मैदानों में बहुतायत से उगने वाला एक पौधा होता है। नीलगिरी पर्वत को अपना नाम इन्हीं नीले कुरंजी के पुष्पों से आच्छादित होने के कारण नाम मिला। यह पौधा 12 वर्षों में एक बार ही फूल देता है।

नीलकुरिंजी में कितने वर्षों में फूल निकलते हैं?

ऐसा ही कुछ दक्षिण भारत के केरल राज्य के जंगलों में पाए जाने वाले नीलकुरिंजी फूलों का इतिहास है. दरअसल, नीलकुरिंजी नामक फूल दुनिया के कई असाधारण फूलों में से एक है. खास बात ये है कि नीलकुरिंजी के फूल 12 वर्षों में एक बार खिलते हैं. पर्यटकों को इन फूलों की खूबसूरती को देखने के लिए 12 साल का इंतजार करना पड़ता है.


नीलकुरिंजी भारत में कहां पाया जाता है?

12 साल में एक बार खिलने वाला, नीलकुरिंजी एक प्रकार का जंगली फूल है जो ज्यादातर भारत के दक्षिणी भाग में देखा जाता है। कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के कुछ हिस्से सबसे प्रमुख स्थान हैं जहां यात्री, प्रकृति प्रेमी और वनस्पति विज्ञान के छात्र आते हैं।


क्या हम नीलकुरिंजी का फूल तोड़ सकते हैं?

केरल-तमिलनाडु सीमा के जंगलों में उगने वाली नीलकुरिरिन्जी झाड़ियों को नष्ट करना या उनकी तस्करी करना दंडनीय अपराध है। इस तरह के अपराधों पर भारी जुर्माने के अलावा कारावास भी हो सकता है। अधिकारियों का कहना है कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जाएगा।

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समाप्ति

इस अनूठे फूल के खिलने से केरल की प्राकृतिक सौंदर्य की भरमर हो रही है। नीलकुरिंजी का यह अद्वितीय समय-सीमा हर बार एक नई उत्साही उत्सव की भावना को साथ लाता है, जिससे हर कोने में हरित और आभूषित महसूस होता है।

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